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Saturday, April 11, 2015

निष्क्रिय सज्जनता किसी काम की नहीं होती

‘आज यहाँ पोर्टब्लेयर में विश्व हिन्दू परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लेते हुए मैं बहुत भावुक हूँ क्योंकि विश्व हिन्दू परिषद और मेरे जीवन को एक साथ पचास वर्ष पूरे हुए हैं। मेरा जीवन हिन्दू जाति की सेवा करने के लिए है और मैं प्रार्थना करती हूँ कि मेरी मृत्यु भी हिन्दू स्वाभिमान के लिए लड़ते हुए हो तो शायद मेरी मृत्यु भी सार्थक हो जाए। क्योंकि मैं मानती हूँ कि मेरे रोम-रोम में मेरी परम्परा का रक्त बहता है। आप उस भगवा को पूजते हो जिसके पीछे सूर्य का तेज है, चन्द्रमा की शीतलता है, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु और वीर सावरकर जैसे हुतात्माओं का समर्पण है। 

भगवा को प्रणाम करना यानि भारत की उस उज्ज्वल परम्परा को प्रणाम करने जैसा है। मैं समझती हूँ कि सारा विश्व त्राण पाएगा जब हिन्दू विचार प्रबल होकर सारे विश्व के जनमानस में फैलेगा क्योंकि जहाँ हिन्दू है वहाँ सब सुरक्षित हैं हिन्दू ही है जो दुनिया भर के मतावलंबियों को अपने में आत्मसात् कर लेता है। हमारी आस्था तो वह है जो पत्थर पर भी सिन्दूर चढ़ाकर हनुमन्तलाल को प्रकट कर देती है इसलिए इस आस्था में जीने वाले, इस श्रद्धा को जीने वाले हम हिन्दू, हमें समझाएंगे ये फिल्म बनाने वाले लोग कि कैसी होनी चाहिए हमारी पूजा पद्धति? एक फिल्म और भी बनी है उसमें भी सच को सच बताया है। हमारे सामने समस्या यह नहीं है कि हम पूजा पद्धति कैसे रखें। हमारे सामने समस्या यह है कि भारत को तोड़ने वाली ताकतें प्रबल होकर, भारत में भेष बदलकर घूम रही हैं और अपने मंसूबों को कारगर सिद्ध करने में लगी हैं। इस समस्या का एक ही समाधान है सजग भारतीय, जागरूक भारतीय और सबसे बड़ी बात निष्ठावान होकर सक्रिय भारतीय। आप भले ही निष्ठावान हो लेकिन निष्क्रिय रहो तो भला किस काम के? आपकी सज्जनता किस काम की? बहुतेरे सज्जन पलायनवादी होते हैं। वो बुरों के लिए रास्ता छोड़ देता है। अरे सज्जन हो तो भी सीना तान के खड़े होना सीखो। किस बात का डर है?

इस अवसर पर विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त सचिव श्री राघूवल्लभजी, विहिप स्वर्ण जयंती समिति के अध्यक्ष श्री उत्पल शर्मा, मंत्री श्री ए.के.माहेश्वरी एवं विहिप अंडमान-निकोबर द्वीप समूह के संगठन सचिव श्री पार्थ मण्डल प्रमुख रूप से सम्मिलित हुए।

दिनांक 31 जनवरी 2015
विश्व हिन्दू परिषद स्वर्ण जयंती समारोह
पोर्टब्लेयर, अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह

Wednesday, April 8, 2015

हिन्दू धर्म को नया निखार देगी युवा पीढ़ी

‘हमारे ऋषि-मुनि वैज्ञानिक थे। वे बाहरी वैज्ञानिक खोजों एवं मानव की आंतरिक शांति के लिए नित नए प्रयोग करते थे। वे उन बीजों के समान थे जो अपने अंकुरण के दौरान ऊपर व नीचे की यात्रा एक साथ करते हैं। वे आज के वैज्ञानिकों की भाँति खंड-खंड में शोध नहीं करते थे बल्कि समग्रता और परिपूर्णता उनका उद्देश्य होता था। वो न सिर्फ पृथ्वीवासियों के कल्याण की कामना करते थे बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शांति और स्थिरता को अपनी नियमित प्रार्थनाओं में प्रभु से मांगा करते थे। उन्होंने विनाश नहीं बल्कि सृजन का मार्ग चुना इसीलिए हिन्दू संस्कृति में पंचतत्वों को उपसाना में जोड़कर उनके संरक्षण की सुन्दर परम्परा भी हमारे ऋषियों ने ही आरंभ की थी।

    कई लोग चिंतित हैं कि हमारे संस्कारों पर पश्चिमी जगत का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। मेरा विचार है कि हमें इससे भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है क्यांेकि सत्य का बीज कभी नहीं मरता। वह शाश्वत होता है। मनुष्य के भीतर भौतिकवाद बढ़ेगा तो असंतोष बढ़ेगा और असंतोष जब अपनी सीमाएं पार करेगा तो मनुष्य फिर से संतोष की खोज में जुट जाएगा। अन्ततः सुख और संतोष उसे अध्यात्म में ही मिलेगा। हमारी आने वाली पीढ़ी केवल कही-सुनी बातों पर नहीं बल्कि धर्म की सत्यता को परखकर उसे अपनाएगी। वो वेदों-पुराणों को खंगालेंगे और धर्म के नाम पर फैली हुई भ्रांतियों को अपने विवेक की छलनी से छानकर हिन्दू संस्कृति को एक नया कलेवर प्रदान करेंगे और यह एक सुखद स्थिति होगी जब युवा पीढ़ी धर्म को परखकर उसे पारस बना देगी।’

    श्रीहरि सत्संग समिति, मुंबई द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के दौरान पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी ने उक्त विचार प्रकट किये। एक भव्य शोभायात्रा के पश्चात् पूज्य सदानन्द योगीजी महाराज (तुंगारेश्वर) के कर-कमलों से आयोजन का शुभारंभ हुआ। मुंबई के उपनगर भयंदर की जैसलपार्क चैपाटी पर सम्पन्न हुए सात दिवसीय इस आयोजन की मुख्य कथा प्रवक्ता पूज्या दीदी माँ जी थीं। कथा के मुख्य यजमान रहे श्रीमती ऊषाकिरण-शिवपूजन गुप्ता परिवार। कथा संयोजक श्री शिवनारायण अग्रवाल, श्री मनोज अग्रवाल, स्वागताध्यक्ष श्री गजेन्द्र भण्डारी एवं व्यवस्था प्रमुख श्री सुरेश खंडेलवाल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। इस अवसर पर संस्था के राष्ट्रीय संरक्षक श्री स्वरूपचन्द गोयल, न्यासी श्री मुकुटबिहारी सेक्सरिया, संस्था के मुंबई अध्यक्ष श्री विनोद लाठ, मंत्री श्री सुरेन्द्र विकल, श्री बजरंग चैहान, श्री अमित पंसारी, श्री प्रदीप गर्ग, श्री नरेन्द्र गुप्ता, श्री रोहिदास पाटिल, श्री हंसकुमार पाण्डे, श्री उदितनारायण सिंह, श्री यशवन्त कांगणे, श्री प्रवीण पाटिल, डाॅ.सुशील अग्रवाल, श्री राजेन्द्र मित्तल सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक सम्मिलित हुए।



सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, मार्च 2015

Monday, April 6, 2015

तीन बातें सफलता की...

एक बहेलिये ने जंगल में एक नन्हें से पंछी को पकड़ लिया। वो बेचारा चिल्लाने लगा -‘मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो। देखो तो, मैं कितना छोटा सा हूँ। अगर तुम ये सोचते हो कि तुम मुझे बनाकर खाओगे तो मेरे जरा से मांस से तुम्हारा पेट भी नहीं भरेगा। मैं इतना सुन्दर भी नहीं हूँ कि तुम मुझे किसी को बेच दो क्योंकि पंछियों को लोग इसीलिए खरीदते हैं कि या तो वो बोलते हों या फिर उनके पंख सुन्दर हों। मेरे साथ तो ये दोनों ही बातें नहीं हैं। इसलिए तुम मुझे छोड़ दो।’

    बहेलिये ने कहा -‘नहीं छोडूँगा।’ यह सुनकर पंछी ने कहा -‘जीवन में हमेशा सफल रहने के तीन रहस्य मैं तुम्हें बता सकता हूँ लेकिन तभी जब तुम मुझे छोड़ दो।’ उस बहेलिये के मन में लालच पैदा हुआ -‘अरे! ये नन्हा सा पंछी मुझे सफलता के तीन रहस्य बनाएगा!’ उसने लोभवश तुरंत उसे जाल से आजाद कर दिया। छूटते ही वह पास के एक पेड़ पर जा बैठा। बहेलिये ने कहा -‘लो, मैंने तुम्हें छोड़ दिया। तुम कहते थे ना कि सफलता के तीन रहस्य बताओगे। अब बताओ मुझे वो रहस्य।’

    पंछी बोला -‘सबसे पहला रहस्य तो यह है कि जो बात तुम्हारी बुद्धि में ना आए उसको मानना नहीं।’ जैसे कि मैं आप सब सामने बैठे बच्चों से यह कहूँ कि -‘ये जो बिटिया बैठी है ना, इसको रात को पंख निकल आते हैं। फिर ये उड़कर उस मन्दिर के ऊपर बैठ जाती है। तो बताओ बच्चों, क्या इस बात को आपकी बुद्धि कभी मानेगी? जो बात आपकी बुद्धि में ना समाये उसे कभी मत मानना।’ फिर बहेलिये ने कहा दूसरा बताओ। पंछी ने कहा -‘दूसरा रहस्य यह है कि असंभव को संभव बनाने की कोशिश नहीं करना। जो हो नहीं सकता उसे करने की कोशिश कभी नहीं करना।’ जैसे मैं आपसे पूछूँ कि कोई इंसान कहे कि मैं तो मरूँगा ही नहीं। तो क्या उसका हमेशा जीवित रहना संभव है? क्या वह कभी नहीं मरेगा?’ और उस पंछी ने तीसरा रहस्य बताया कि -‘नुकसान हो जाने के बाद कभी भी पछताना नहीं।’

    ये तीन रहस्य हैं सफलता के। यह सुनकर वह बहेलिया चिल्लाने लगा -‘तू बड़ा ही बुरा पंछी है, तूने मुझे धोखा दिया है। ये भी भला कोई रहस्य हैं। मैं तो समझता था कि तू पता नहीं कौन सा खजाना मुझे बताने वाला है।’ तो पंछी ने कहा -‘ऐ भाई सुनो, इधर देखो मेरी ओर।’ बहेलियों ने जब उसकी ओर देखा तो वह बोला -‘मेरे दिल में कोहिनूर हीरा है।’ जैसे ही बहेलिये ने ये सुना वह पेड़ पर चढ़कर उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा। पंछी एक डाल से दूसरी डाल उसे नचाता हुआ उड़कर दूसरे पेड़ पर जा बैठा। बहेलिया फिर दूसरे पेड़ पर चढ़ा। इसी अफरातफरी में बहेलिया पेड़ से नीचे गिर पड़ा और उसका एक पैर टूट गया। नीचे पड़ा-पड़ा वह पछता रहा था -‘अरे, मैंने इसे क्यों छोड़ा। मैं मारने के बाद इसे काटता तो इसके दिल से कोहिनूर हीरा निकलता।’

    पंछी फिर से उसके पास आकर बोला -‘देखो, तुमने मेरी एक भी बात नहीं मानी। मैंने तुम्हें सफलता के तीन रहस्य बताए थे। एक - जो बुद्धि में ना आए उसे मत मानो। दूसरा - असंभव को संभव करने की कोशिश ना करो और तीसरा - हानि हो जाने के बाद पछताना नहीं।’ मेरे दिल में कोहिनूर का हीरा है भला यह बात बुद्धि में आने जैसी है क्या? फिर भी तुमने मुझे पकड़ने का प्रयास किया। मेरे तो पंख हैं लेकिन तुम्हारे नहीं, तुम मुझे कैसे पकड़ सकते हो? क्या यह असंभव नहीं था जिसे तुमने संभव बनाने का प्रयत्न किया। तीसरा जब मैं तुमसे छूट ही गया था तो फिर पछताते हुए तुम मुझे पकड़ने की हाय-हाय में क्यों दौड़े जिसके परिणाम में तुम्हारा पैर टूट गया?

जीवन में इन तीन बातों को ख्याल रखना बहुत जरुरी है। यह केवल एक मनोरंजक कहानी नहीं है बल्कि जीवन की बड़ी सीख मिलती है। अक्सर हममें से अधिकतर लोग कही-सुनी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। उन बातों पर भी अमल करना शुरू कर देते हैं। जिन्हें पहली बार सोचने में तो हमारी बुद्धि ही उसे मानने से इंकार कर देती है, फिर केवल अपनी जिद के कारण हम जीवन में बहुत से ऐसे कार्यों को पूरा करने की कोशिश में अपना ऊर्जा नष्ट करते हैं जो संभव ही नहीं होते। जिन्हें लाख प्रयत्न करने पर भी संभव नहीं बनाया जा सकता और फिर इन दोनों ही बातों के कारण जब कभी भी हमें बहुत बड़ी हानि होती है तो हम पछताने की प्रक्रिया से गुजरने लगते हैं जो अंततः हमें मानसिक अवसाद तक ही स्थिति में पहुँचा देती है। इस कहानी को सदैव स्मरण रखें और अपने जीवन को सार्थक बनाने में स्वयं की सहायता करें।

साभार - वात्सल्य निर्झर, मार्च 2015